VishwaRoopDarshanYog ~ Bhagwat Geeta Chapter 11 | विश्वरूपदर्शनयोग ~ अध्याय ग्यारह

अथैकादशोऽध्यायः- विश्वरूपदर्शनयोग विश्वरूप के दर्शन हेतु अर्जुन की प्रार्थना   अर्जुन उवाच मदनुग्रहाय परमं गुह्यमध्यात्मसञ्ज्ञितम्‌ । यत्त्वयोक्तं वचस्तेन मोहोऽयं विगतो मम ॥   arjuna uvāca madanugrahāya paramaṅ guhyamadhyātmasaṅjñitam. yattvayōktaṅ vacastēna mōhō.yaṅ vigatō mama৷৷11.1৷৷   भावार्थ : अर्जुन बोले- मुझ पर अनुग्रह करने के लिए आपने जो परम गोपनीय अध्यात्म विषयक वचन अर्थात उपदेश कहा, उससे … Read more

VibhutiYog ~ Bhagwat Geeta Chapter 10 | विभूतियोग ~ अध्याय दस

अथ दशमोऽध्याय:- विभूतियोग भगवान की विभूति और योगशक्ति का कथन तथा उनके जानने का फल   श्रीभगवानुवाच भूय एव महाबाहो श्रृणु मे परमं वचः । यत्तेऽहं प्रीयमाणाय वक्ष्यामि हितकाम्यया ৷৷10.1৷৷ śrī bhagavānuvāca bhūya ēva mahābāhō śrṛṇu mē paramaṅ vacaḥ. yattē.haṅ prīyamāṇāya vakṣyāmi hitakāmyayā৷৷10.1৷৷   भावार्थ : श्री भगवान्‌ बोले- हे महाबाहो! फिर भी मेरे परम … Read more

RajVidyaRajGuhyaYog ~ Bhagwat Geeta Chapter 9 | राजविद्याराजगुह्ययोग ~ अध्याय नौ

अथ नवमोऽध्यायः- राजविद्याराजगुह्ययोग परम गोपनीय ज्ञानोपदेश, उपासनात्मक ज्ञान, ईश्वर का विस्तार श्रीभगवानुवाच   इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे । ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्‌॥9.1॥   śrī bhagavānuvāca idaṅ tu tē guhyatamaṅ pravakṣyāmyanasūyavē. jñānaṅ vijñānasahitaṅ yajjñātvā mōkṣyasē.śubhāt৷৷9.1৷৷   भावार्थ : श्री भगवान बोले- तुझ दोषदृष्टिरहित भक्त के लिए इस परम गोपनीय विज्ञान सहित ज्ञान को पुनः भली … Read more

AksharBrahmaYog ~ Bhagwat Geeta Chapter 8 | अक्षरब्रह्मयोग~ अध्याय आठ

अथाष्टमोऽध्यायः- अक्षरब्रह्मयोग ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर अर्जुन उवाच किं तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं पुरुषोत्तम । अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते৷৷8.1৷৷ arjuna uvācakiṅ tadbrahma kimadhyātmaṅ kiṅ karma puruṣōttama.adhibhūtaṅ ca kiṅ prōktamadhidaivaṅ kimucyatē৷৷8.1৷৷ भावार्थ : अर्जुन ने कहा- हे पुरुषोत्तम! वह ब्रह्म क्या है? अध्यात्म क्या है? कर्म … Read more

GnyanVignyanYog ~ Bhagwat Geeta Chapter 7 | ज्ञानविज्ञानयोग ~ अध्याय सात

अथ सप्तमोऽध्यायः- ज्ञानविज्ञानयोग विज्ञान सहित ज्ञान का विषय,इश्वर की व्यापकता श्रीभगवानुवाच मय्यासक्तमनाः पार्थ योगं युञ्जन्मदाश्रयः । असंशयं समग्रं मां यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु ॥ śrī bhagavānuvāca mayyāsaktamanāḥ pārtha yōgaṅ yuñjanmadāśrayaḥ. asaṅśayaṅ samagraṅ māṅ yathā jñāsyasi tacchṛṇu৷৷7.1৷৷ भावार्थ : श्री भगवान बोले- हे पार्थ! अनन्य प्रेम से मुझमें आसक्त चित तथा अनन्य भाव से मेरे परायण होकर … Read more

AtmSanyamYog Bhagwat Geeta Chapter 6 | आत्मसंयमयोग ~ अध्याय छः

अथ षष्ठोऽध्यायः- आत्मसंयमयोग कर्मयोग का विषय और योगारूढ़ के लक्षण, काम-संकल्प-त्याग का महत्व श्रीभगवानुवाच अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः । स सन्न्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः ॥ śrī bhagavānuvāca anāśritaḥ karmaphalaṅ kāryaṅ karma karōti yaḥ. sa saṅnyāsī ca yōgī ca na niragnirna cākriyaḥ৷৷6.1৷৷ भावार्थ : श्री भगवान बोले- जो पुरुष कर्मफल का … Read more

KarmSanyasYog Bhagwat Geeta Chapter 5 ~ कर्मसंन्यासयोग ~ अध्याय पाँच

अथ पंचमोऽध्यायः- कर्मसंन्यासयोग ज्ञानयोग और कर्मयोग की एकता, सांख्य पर का विवरण और कर्मयोग की वरीयता   अर्जुन उवाच सन्न्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि । यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम्‌ ॥ arjuna uvāca saṅnyāsaṅ karmaṇāṅ kṛṣṇa punaryōgaṅ ca śaṅsasi. yacchrēya ētayōrēkaṅ tanmē brūhi suniśicatam৷৷5.1৷৷ भावार्थ : अर्जुन बोले- हे कृष्ण! आप कर्मों के संन्यास … Read more

GyanKarmSanyasYog Bhagwat Geeta Chapter 4 ~ ज्ञानकर्मसंन्यासयोग – अध्याय चार

अथ चतुर्थोऽध्यायः- ज्ञानकर्मसंन्यासयोग योग परंपरा, भगवान के जन्म कर्म की दिव्यता, भक्त लक्षण भगवत्स्वरूप श्री भगवानुवाच इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्‌ । विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्‌ ॥ śrī bhagavānuvāca imaṅ vivasvatē yōgaṅ prōktavānahamavyayam. vivasvān manavē prāha manurikṣvākavē.bravīt৷৷4.1৷৷ भावार्थ : श्री भगवान बोले- मैंने इस अविनाशी योग को सूर्य से कहा था, सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु … Read more

कर्मयोग~ भगवत गीता ~ अध्याय तीन – Karmyog Bhagwat Geeta Chapter 3

अथ तृतीयोऽध्यायः- कर्मयोग ज्ञानयोग और कर्मयोग के अनुसार अनासक्त भाव से नियत कर्म करने की आवश्यकता अर्जुन उवाच ज्यायसी चेत्कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन । तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव ॥   arjuna uvācajyāyasī cētkarmaṇastē matā buddhirjanārdana.tatkiṅ karmaṇi ghōrē māṅ niyōjayasi kēśava৷৷3.1৷৷ भावार्थ : अर्जुन बोले- हे जनार्दन! यदि आपको कर्म की अपेक्षा ज्ञान श्रेष्ठ मान्य … Read more

सांख्ययोग ~ भगवत गीता ~ द्वितीय दो – Bhagwat Geeta Chapter 2

अथ द्वितीयोऽध्यायः ~ सांख्ययोग अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद  संजय उवाच तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्‌ । विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः ॥2.1॥ sañjaya uvāca taṅ tathā kṛpayā.viṣṭamaśrupūrṇākulēkṣaṇam. viṣīdantamidaṅ vākyamuvāca madhusūdanaḥ৷৷2.1৷৷ भावार्थ : संजय बोले- उस प्रकार करुणा से व्याप्त और आँसुओं से पूर्ण तथा व्याकुल नेत्रों वाले शोकयुक्त उस अर्जुन के प्रति भगवान मधुसूदन ने … Read more

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